विजय विट्ठल का मंदिर
वास्तुशिल्प की श्रेष्ठता से युक्त 3 देवालय हंपी में है । उसमें पहला ही विजय विठ्ठल देवालय हैं । इसके कलात्मक सामने का भाग तथा फल-पूजा और कल्याण मंडप कोनों को कृष्णदेव राय ने अपने दिग्वीजय के बाद 1513 इ.में बनवाया । यह देवालय बहू कोनों से युक्त ऊपर की नींव पर निर्मित किया गया है । इसके प्रयुक्त स्तंभों को बहुत बारीकी से एक किले में खुदाई करके कतारों पर खड़ा कर दिया गया है ।इनके ऊपर प्राणियों, पक्षियों, लबाओं आदि के चित्रों की खुदाई हुई है । नीचे की पट्टी पर और चौड़ाई पट्टी पर वैसा ही खुदाई के काम दिख पड़ता है । बीच-बीच में रहने वाले छोटे मेहराबों में देवताओं का कुछ उभरे चित्र है । ये चित्र तंजावुर के बृहदीश्वर देवालय अथवा पट्टदकल्लु के विश्वेश्वर देवालय के बहारी सजावट क स्मरण लाते हैं । यहां पर खुदाई हुआ कमल, कमल नालों को दातों में पकड़कर उड़ते हुए हंस, सुंदर खुदाया हुआ योगासन भंगी चित्र, अगल-बगल में खुदाए हुए बदक आदी पानी में रहने वाले पक्षी नयन मनोहर है ।
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