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Virupaksha Temple | विरूपाक्ष देवालय हंपी

विरूपाक्ष देवालय हंपी

               विरूपाक्ष देवालय (Virupaksha Temple) हंपी(hampi) जाने के लिए आपको होस्पेट(hospet) से जानेवाली बस पकडनी होगी जो आपको मंदीर से थोडी दुरी पर छोड देगी | बस से ऊतरने के बाद जब आप पश्चिम दिशा की तरफ मुड कर देखेंगे तो आपको भव्य और ऊंचे ढंग से विराजमान गोपुर(gopur) दिखेगा । 
virupaksha temple hampi

                     यह गोपुर करीब २६५ फीट ऊंचा,  तल का हिस्सा २४० फीट लंबा और वह ग्यारह हन्तोंसे युक्त है।  बिष्टप्पय्या गोपुर(Bishtappayya Gopur) ईसे ही कहते है। ईस गोपुर का निर्माण तथा काल निर्दीष्ट तौर पर मालुम नहीं पर ईसके जिर्नोध्दार की जानकारी तो मिल सकती है । मालुम हो सकता है की १५१० ई.मे. श्री कृष्णदेवराय(Sri Krishna Devaraya) के जमाने में ईस गोपुर का जिर्नोध्दार(Revival) हुआ है । ईसलिए हम यह निष्कर्श लगा सकते है की यह गोपुर श्री कृष्णदेवराय(Sri Krishna Devaraya) के शासन के पहले निर्माण हुआ है ।
                  ईस महाद्वार के द्वारा अंदर जाने पर आपको देवालय का बडा प्राकार मिलता है। ईस प्राकार की लंबाई करीब ५१० फीट है और चौडाई १३० फीट है । प्राकार की जमीन पर पत्थरोंको बिछाया गया है। ईस प्राकार के बिच में एक नाला है। ईसमे तुंगभद्रा पानी (Tungbhadra water)बहता है। ईसके ऊपर पत्थर ढका हुआ है । ईस प्राकार परस्थल से आनेवाले यात्रियों (Tourists) को टहरने के लिए यहां वसती गृह(Living house) है । देवालय की कचहरी भी है । प्राकार के बाई ओर के कोने में एक बडी पाठशाला है । दायी ओर फल पूजा मंडप है। ईसे ही कल्याणी मंडप (Kalyani Mandap)कहते है । यात्रार्थियों की सुविधा के लिए दायी ओर एक कुंआ भी है।
                  विरूपाक्ष मंदीर(Virupaksha Temple) के दो प्राकार और दो गोपुर भी है। पहले प्राकार से पश्चिम की ओर से निकले तो और एक गोपुर दिखाई पडता है । अपने पट्टाभिषेक के स्मरणार्थ भेंट की रूप में निर्माण करवाया था । ईस गोपुर के द्वारा प्रवेश करे तो दुसरा प्राकार मिलता है । ईस प्राकार में ध्वजस्तंभ, दीपस्तंभ, आदि दिखाई पडते है। बाई ओर में पातालेश्वर(pataleshwar), मुक्तिनरसिंह(muktinarsinha), सुर्यनारायण(suryanarayan) के मंदीर, दाई ओर में लक्ष्मीनरसिंह(laxminarsinha), महिषासुर मर्धिनी(mahishasur mardhini) आदि मंदीर है ।

                         "विरुपाक्ष मंदिर जो स्थापत्य कला और वैज्ञानिक दृष्टिकोण का बेजोड़ नमूना है । साथ ही यहां सदियों से पूजा-अर्चना भी चली आ रही है । इस मंदिर की विशाल गोपुरम का निर्माण राजा कृष्णदेव राय ने 1510 में करवाया था । मंदिर के दक्षिण में 12 स्तंभों के मंडप में भगवान गणेश की विशाल प्रतिमा है । गोपुर से आगे बढ़ने पर मंदिर की भव्यता और बढ़ जाती है । विरुपाक्ष मंदिर को पंपापति मंदिर भी कहा जाता है । मंदिर के मंडप पर श्रद्धालु आज भी अपनी पीढ़ियों से चली आ रही परंपरा निभा रहे हैं । यह मंदिर विजय नगर में सबसे पुराना माना जाता है । और आज भी यहां भगवान शिव की आराधना होती है ।"
                     पूजा के अलावा यह मंदिर वैज्ञानिक नजरिए से भी अहम है । यहां एक कमरे में ऊपर की तरफ एक छेद है, जिससे यहां पढ़ने वाली कॉपरनकी परछाई उल्टी दिखाई देती है । इसके अलावा मंदिर में ध्यान के लिए नीचे की तरफ कमरे हैं । यहां ध्यान के लिए लोग बैठते हैं । इन कमरों में भी छत की तरफ बड़ा सुराख है । जिससे रोशनी कमरों के अंदर पहुंचती है । मंदिर में सैकड़ों साल पहले की गई कलाकारी भी हैरान कर देने वाली है । हम ज्यादातर मंदिरों की तरह यहां पर पास में ही एक तालाब । है मंदिर के बाहर दोनों तरफ उस वक्त का बाजार भी है । 

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