किष्कींदा क्षेत्र हंपी
त्रेता युग में ईस हंपी(hampi) को किष्कींदा(kishkinda) शहर कहते थे । अब हम्पी(hampi) क्षेत्र से प्रसिध्दी पानेवाला, १३ शतमान से १५- १६ शतमान तक विजृंभित साम्राज्य होकर, राज्य भार किया हुआ विजयनगर (Vijayanagar empire)साम्राज्य के नाम से प्रसिध्दी पा लिया है ।
किष्कींदा(Kishkindha city) शहर वानर का राज्य था । ईस राज्य का पालन वाली (vali) नामक चक्रवर्ती करता था । वह शूर, वीर और बलवान था । वाली का छोटा भाई सुग्रीव(Sugriva) भी बलवान और शुरवीर था । सुग्रीव को वाली ने ईस राज्य का मंत्री (Minister) बना दिया था ।
सुग्रीव और वाली की यह कथा अचंबित करनेवाली है। एक बार दुग्धुभि नामक राक्षस वाली के साथ युध्द के लिए आया। राक्षस मायावी और बलवान था। वाली राक्षस से युध्द करने लगा । राक्षस युध्दमें पीछे हटते - हटते किष्कींदा के कानन में एक गुफा में चला गया । वाली नें सुग्रीव को ऊस गुफा के दरवाजे के पास खडा किया और कहा 'जब तक मैं ईस राक्षस को मारकर वापस नंही आता तब तक तुम यहां मेरी राह देखना '। ऐसा कहकर वाली गुफा के अंदर चला गया और छह महीने तक कोई बाहर नहीं आया ।
एक दिन गुफा के दरवाजे से खुन की नाला बहने लगी । सुग्रीव भ्रमीत हो गया, कुछ समझ नहीं पाया । ऊसको लगा शायद राक्षस ने वाली को मार डाला और राक्षस गुफा के बाहर न आये ईस लिए सुग्रीवनें एक बडा पत्थर गुफा के दरवाजे पर रख दिया और वापस अपने साम्राज्य में आ गया । वाली के ना होने के कारण राज्यभार सुग्रीव को संभालना था । सुग्रीव राजा बनने की तैयारीयां कर रहा था । कुछ दिन बाद वाली ऊस पत्थर को हटाकर बाहर आ गया । वाली बाहर आकर देखता है की सुग्रीव वहां नही है । वाली वापस राजगृह आया । वहा ऊसने देखा की ऊसकी पीटपीछे सुग्रीव राज्य का राजा बना हुआ है । ऊसे यह देखते ही गुस्सा आ गया । ऊसने सुग्रीव को मार भगाया और ऊसकी पत्नी को अपने पास रख लिया ।
बाद में सुग्रीव के साथ हनुमंत, जांभवंत आदि वानर सेना आकर मिलते है । ईसी समय ८ दिनों के अंदर राम और लक्ष्मण सीता का शोध करते - करते किष्कींदा नगर आ पहुंचते है। श्रीराम आने की खबर पाकर सुग्रीव, हनुमंत और जांभवंत सभी मिलकर श्रीराम के पास आते है। वे श्रीराम के दर्शन पाकर वाली के शोषन के बारे में बताते है ।
सुग्रीव राम से बिनती करते है की, वाली का संहार करके अपने को राजा बना दिया तो सीता के शोधना कार्य में वो ऊनकी मदद कर देंगे'। श्रीराम ने सुग्रीव के कहने के अनुसार वाली का संहार कर दिया और सुग्रीव का पटाभिषेक कर दिया ।
ईसके बाद हनुमान और वानर सीता माता को ढुंढने के लिए चारो दिशा में चले जाते है । हनुमान द्क्षिण दिशा की ओर चलकर लंका पहुंच जाते है । वहांं सीतामाता को देखकर, श्रीराम की पहचान के लिए ऊन्होने दी अंगुठी देते है । ऊसके बाद सीतामाता की एक चीज लेकर हनुमानजी वापस श्रीराम के पास किष्कींदा शहर पहुंचते है और ऊन्हे सब समाचार बताते है।
ऊसके बाद वानर सैन्य के साथ राम- लक्ष्मण (Ram - Laxman) लंका (Lanka) पर हमला करते है । श्रीराम राक्षस रावण (Ravana) को मारकर सीतामाता को लेकर वापस किष्कींदा (Kishkindha) नगर वापस आते है । कुछ दिन वहां रहकर श्रीराम सीतामाता(Sitamata) के साथ वापस अयोध्या (Ayodhya) आते है ।
ईस जगह में पुराण प्रसिध्द पहाड है, जो हनुमानजी का जन्मस्थल है । अंजनी पर्वत (Anjani Mountains), गंधमाधव पर्वत (Gandhamadhav Mountains), ऋष्यमुख पर्वत(Rishmukh Mountains), मातंग पर्वत(Matang Mountains), माल्यवंत रघुनाथ पर्वत (Mallywant Raghunath Mountains) है । यहां श्रीरामचंद्र (Shri Ramchandra Temple) का देवालय है । आज भी रोज श्रीरामचंद्र्जी की पुजा यहांं पर चलती है । कोदंडराम देवालय(Kodandaram Temple), चक्रतीर्थ (Chakratirtha), पंपासरोवर(Pampa Lake), श्रीयंत्रोध्दारक हनुमान देवालय (Shri Hanuman Mechanizer Temple), कोटिलिंग (Kotiling) ये सब आज भी यहां प्रसिध्द है ।
पंपापती(Pumpapati) का दर्शन पाकर देवालय के ऊत्तर भाग से बाहर आये तो ऊत्तर दिशा को ओर दो देवालय दिख पडते है । एक पंंपापती (Pumpapati) और दुसरी भुवनेश्वरी (Bhuvaneshwari) मुर्ती । ये मुर्तीयां बहुत ही सुंदर है । पंपापती(Pumpapati) के मंदीर के बाहर दायी ओर नवग्रह विग्रहोंकी प्रतिष्ठा देखने को मिलती है ।
ऊत्तर भाग के ओर और एक गोपुर दिखाई पडता है । ईसे कनकगिरी (Kanakgiri) गोकुर कहते है । ईस गोपुर में रत्नगर्भ गणपती (Ratna Garbha Ganpati) और देवी के विग्रह है । ईस गोपुर के द्वारा बाहर आये तो दायी ओर एक बडा सरोवर है । ईसे मन्मथ सरोवर (Manmath lake) कहते है । देव का तेप्पोत्सव को ईस सरोवर में ही करते है । यहांं कई छोटे छोटे मंदीर भी है । लेकीन ऊसमें मुर्तीयां ही नही है । यहां से आगे बढे तो तुंगभद्रा (Tungabhadra river) नदी को पहुंचते है ।
फिर मूल देवालय में आकर देवालय के पिछ्ली तरफ आये तो ऊपर चढने के लिए सीढीयां है । ईन सिढीयोंद्वारा चार सिढीयां चढने के बाद दायी ओर घुमे तो एक कमरा दिख पडता है । ईस कमरे के पुर्व दिशा में एक छोटासा रंध्र है । ईससे पार कर आनेवाली सुरज की रश्मियां पश्चिम की दिवार पर पडती है । ईसके सामने के बडे गोपुर का प्रतिबिंब उल्टा तरह देख सकते है । यह एक पिन होल क्यामेरा (Pin hole camera)के जैसा है ।
वहां से फिर सिढीयां चढकर पश्चिम दिशा की तरफ चलकर ऊपर आये तो श्री विद्यारण्य का मंदीर है । ऊत्तर दिशा में मठ है । दक्षिण दिशा में और एक छोटासा दरवाजा है । उसके द्वार बाहर आकर देखे तो थोडी दुरी पर दायी ओर एक सरोवर है । ईसका नाम लोक पावन तीर्थ है ।
यहांं से लौटकर सिढीयां उतरकर महाद्वार के जरिये बाहर आये तो गोपुर के सामने करीब दो किलोमीटर लंबी
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Hampi to Badami Travel Moments
किष्कींदा(Kishkindha city) शहर वानर का राज्य था । ईस राज्य का पालन वाली (vali) नामक चक्रवर्ती करता था । वह शूर, वीर और बलवान था । वाली का छोटा भाई सुग्रीव(Sugriva) भी बलवान और शुरवीर था । सुग्रीव को वाली ने ईस राज्य का मंत्री (Minister) बना दिया था ।
सुग्रीव और वाली की यह कथा अचंबित करनेवाली है। एक बार दुग्धुभि नामक राक्षस वाली के साथ युध्द के लिए आया। राक्षस मायावी और बलवान था। वाली राक्षस से युध्द करने लगा । राक्षस युध्दमें पीछे हटते - हटते किष्कींदा के कानन में एक गुफा में चला गया । वाली नें सुग्रीव को ऊस गुफा के दरवाजे के पास खडा किया और कहा 'जब तक मैं ईस राक्षस को मारकर वापस नंही आता तब तक तुम यहां मेरी राह देखना '। ऐसा कहकर वाली गुफा के अंदर चला गया और छह महीने तक कोई बाहर नहीं आया ।
एक दिन गुफा के दरवाजे से खुन की नाला बहने लगी । सुग्रीव भ्रमीत हो गया, कुछ समझ नहीं पाया । ऊसको लगा शायद राक्षस ने वाली को मार डाला और राक्षस गुफा के बाहर न आये ईस लिए सुग्रीवनें एक बडा पत्थर गुफा के दरवाजे पर रख दिया और वापस अपने साम्राज्य में आ गया । वाली के ना होने के कारण राज्यभार सुग्रीव को संभालना था । सुग्रीव राजा बनने की तैयारीयां कर रहा था । कुछ दिन बाद वाली ऊस पत्थर को हटाकर बाहर आ गया । वाली बाहर आकर देखता है की सुग्रीव वहां नही है । वाली वापस राजगृह आया । वहा ऊसने देखा की ऊसकी पीटपीछे सुग्रीव राज्य का राजा बना हुआ है । ऊसे यह देखते ही गुस्सा आ गया । ऊसने सुग्रीव को मार भगाया और ऊसकी पत्नी को अपने पास रख लिया ।
बाद में सुग्रीव के साथ हनुमंत, जांभवंत आदि वानर सेना आकर मिलते है । ईसी समय ८ दिनों के अंदर राम और लक्ष्मण सीता का शोध करते - करते किष्कींदा नगर आ पहुंचते है। श्रीराम आने की खबर पाकर सुग्रीव, हनुमंत और जांभवंत सभी मिलकर श्रीराम के पास आते है। वे श्रीराम के दर्शन पाकर वाली के शोषन के बारे में बताते है ।
सुग्रीव राम से बिनती करते है की, वाली का संहार करके अपने को राजा बना दिया तो सीता के शोधना कार्य में वो ऊनकी मदद कर देंगे'। श्रीराम ने सुग्रीव के कहने के अनुसार वाली का संहार कर दिया और सुग्रीव का पटाभिषेक कर दिया ।
ईसके बाद हनुमान और वानर सीता माता को ढुंढने के लिए चारो दिशा में चले जाते है । हनुमान द्क्षिण दिशा की ओर चलकर लंका पहुंच जाते है । वहांं सीतामाता को देखकर, श्रीराम की पहचान के लिए ऊन्होने दी अंगुठी देते है । ऊसके बाद सीतामाता की एक चीज लेकर हनुमानजी वापस श्रीराम के पास किष्कींदा शहर पहुंचते है और ऊन्हे सब समाचार बताते है।
ऊसके बाद वानर सैन्य के साथ राम- लक्ष्मण (Ram - Laxman) लंका (Lanka) पर हमला करते है । श्रीराम राक्षस रावण (Ravana) को मारकर सीतामाता को लेकर वापस किष्कींदा (Kishkindha) नगर वापस आते है । कुछ दिन वहां रहकर श्रीराम सीतामाता(Sitamata) के साथ वापस अयोध्या (Ayodhya) आते है ।
ईस जगह में पुराण प्रसिध्द पहाड है, जो हनुमानजी का जन्मस्थल है । अंजनी पर्वत (Anjani Mountains), गंधमाधव पर्वत (Gandhamadhav Mountains), ऋष्यमुख पर्वत(Rishmukh Mountains), मातंग पर्वत(Matang Mountains), माल्यवंत रघुनाथ पर्वत (Mallywant Raghunath Mountains) है । यहां श्रीरामचंद्र (Shri Ramchandra Temple) का देवालय है । आज भी रोज श्रीरामचंद्र्जी की पुजा यहांं पर चलती है । कोदंडराम देवालय(Kodandaram Temple), चक्रतीर्थ (Chakratirtha), पंपासरोवर(Pampa Lake), श्रीयंत्रोध्दारक हनुमान देवालय (Shri Hanuman Mechanizer Temple), कोटिलिंग (Kotiling) ये सब आज भी यहां प्रसिध्द है ।
पंपापती(Pumpapati) का दर्शन पाकर देवालय के ऊत्तर भाग से बाहर आये तो ऊत्तर दिशा को ओर दो देवालय दिख पडते है । एक पंंपापती (Pumpapati) और दुसरी भुवनेश्वरी (Bhuvaneshwari) मुर्ती । ये मुर्तीयां बहुत ही सुंदर है । पंपापती(Pumpapati) के मंदीर के बाहर दायी ओर नवग्रह विग्रहोंकी प्रतिष्ठा देखने को मिलती है ।
ऊत्तर भाग के ओर और एक गोपुर दिखाई पडता है । ईसे कनकगिरी (Kanakgiri) गोकुर कहते है । ईस गोपुर में रत्नगर्भ गणपती (Ratna Garbha Ganpati) और देवी के विग्रह है । ईस गोपुर के द्वारा बाहर आये तो दायी ओर एक बडा सरोवर है । ईसे मन्मथ सरोवर (Manmath lake) कहते है । देव का तेप्पोत्सव को ईस सरोवर में ही करते है । यहांं कई छोटे छोटे मंदीर भी है । लेकीन ऊसमें मुर्तीयां ही नही है । यहां से आगे बढे तो तुंगभद्रा (Tungabhadra river) नदी को पहुंचते है ।
फिर मूल देवालय में आकर देवालय के पिछ्ली तरफ आये तो ऊपर चढने के लिए सीढीयां है । ईन सिढीयोंद्वारा चार सिढीयां चढने के बाद दायी ओर घुमे तो एक कमरा दिख पडता है । ईस कमरे के पुर्व दिशा में एक छोटासा रंध्र है । ईससे पार कर आनेवाली सुरज की रश्मियां पश्चिम की दिवार पर पडती है । ईसके सामने के बडे गोपुर का प्रतिबिंब उल्टा तरह देख सकते है । यह एक पिन होल क्यामेरा (Pin hole camera)के जैसा है ।
वहां से फिर सिढीयां चढकर पश्चिम दिशा की तरफ चलकर ऊपर आये तो श्री विद्यारण्य का मंदीर है । ऊत्तर दिशा में मठ है । दक्षिण दिशा में और एक छोटासा दरवाजा है । उसके द्वार बाहर आकर देखे तो थोडी दुरी पर दायी ओर एक सरोवर है । ईसका नाम लोक पावन तीर्थ है ।
यहांं से लौटकर सिढीयां उतरकर महाद्वार के जरिये बाहर आये तो गोपुर के सामने करीब दो किलोमीटर लंबी
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