वीरभद्र देवालय
हमें मालूम होता है कि यह मंदिर अरवीडु वंश के रामराय के जमाने मे निर्मित हुआ है । इसके पहले का नाम मुद्द वीरण था । फिर आते-आते जन सामान्य लोग उद्धन वीरभद्र कह कर पुकारते हुए यह प्रचलित हो गया है ।
वीरभद्र का विग्रह 12 फीट ऊंचा है । हाथ में आयुष को पकड़ा हुआ है । इसके पास ही दक्ष का विग्रह है ।
ईस देवालय के पास ही और एक मंदिर है । इसे चंडिकेश्वर कहते हैं । द्वारपालक तथा पीठ पर दिखाई पड़नेवाले गरुड़ के विग्रह पर ध्यान दें तो यह ईश्वर देवालय होकर भी वैष्णव देवालय हो गया है । इसके लिए शासन का प्रमाण भी मिला है । ईन देवालयों को देखकर फिर कमलापुर रास्ते को ही पकड़ कर आगे चले तो किला तथा दीवारें और अंजना का देवालय दिखाई पड़ता है । कुछ और आगे जाने के बाद और एक देवालय मिलता है । यही पातालेश्वर देवालय है ।
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