अच्युतराय का मंदिर
इस मंदिर को जाने के लिए दाएं - बाएं दोनों ओर के कतार मंडप के द्वारा जाना चाहिए । उत्तराभीमुख फटक के द्वारा अंदर आए तो दाई और अनेक खंभों से युक्त कल्याण मंडप है । वहां से आगे और एक दरवाजा है । उसे पार करे तो हम को अच्युतराय का मंदिर मिलता है ।यह मंदिर 1513 तथा 1539 के बीच के कृष्णदेवराय का छोटा भाई अच्युतराय से बनवाया गया था । क्योंकि यही काल में कृष्णदेवराय से निर्मित द्रविड़ शैली का कल्याण मंडप , विजय विट्ठल स्वामी के मंदिर के जैसा है । यहां पर भी एक शीला में निर्मित युगल खंबे है । कमरों की खुदाई बहुत मनोहर है । देवालय के दरवाजे की चौखट के ऊपर के स्तंभ पीट पर और उसके अगले बगल में सूक्ष्म खुदाई के दशावतारों को चित्रित किया है । मंडप के पीठ पर हाती, घोड़े, अरब व्यापारी और दूसरे विदेशियों के चित्र सुंदर और सहजाता से युक्त बनाये गये है ।
रंगमंडप की छत गिर गई है । द्वारपालो के विग्रह भिन्न हो गए हैं । इस मंदिर के दाई और लक्ष्मी देवालय और पश्चिम के ओर एक मंदिर है । लेकिन इनमें मूर्ति या नहीं है । इस देवालय के दक्षिण के दरवाजे से बाहर आए तो एक ही शीला में निर्मित हुआ सकलायुद्ध पानी 10 हाथों वाली एक देवी का विग्रह है । अच्युतराय देवालय से लौट आकर, विट्ठल देवालय के रास्ते से निकलकर दाई और ऊंचाई पर एक मंदिर दिखाई पड़ता है । यही नरसिंह का मंदिर है । यहां गरूड और अंजनी की मूर्तियां है । आगे निकले तो बाई और पूरंदर मंडप है ।
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