How destroy Vijay Nagar Empire | विजय नगर साम्राज्य कैसे खत्म हुआ ?
विजयनगर साम्राज्य के खंडहर मन में एक सवाल पैदा करते हैं, कि आखिर कैसे इतनी समृद्ध शहर का पतन हुआ? तो आइए आपको बताते हैं किस तरीके से विजयनगर साम्राज्य यहां से खत्म जितना हम मुगलों और तुर्कों के बारे में जानती हैं । उतना हमने विजयनगर साम्राज्य के बारे में पढ़ा सुना नहीं है । विजय नगर जिसका मतलब है "जीत का शहर "। मध्य युग कि इस शक्तिशाली हिंदू साम्राज्य की स्थापना के बाद से ही इस पर लगातार आक्रमण हुए । लेकिन इस साम्राज्य के राजाओं ने इसका कड़ा जवाब दिया । यह साम्राज्य कभी दूसरों के आधीन नहीं रहा । इसकी राजधानी को कई बार मिट्टी में मिला दिया गया । लेकिन इसे फिर खड़ा किया यहां के लोगों ने । विजयनगर साम्राज्य की स्थापना राजा हरिहर और बुक्का नाम के दो भाइयों ने 1336 में की थी । दरअसल विजय नगर पर सन 1336 से लेकर 1565 चार राजवंश, संगमवंश, सालुववंश, तुलुव वंश और अरविडु वंश ने शासन किया । इनमें से तुलुव वंश के कृष्णदेव राय को सबसे प्रतापी राजा माना जाता है । जिनके समय में विजय नगर सैनिक दृष्टि से दक्षिण भारत का बेहद शक्तिशाली राज्य हो गया था । यहां तक कि मुगल बादशाह बाबर के समकालीन कृष्णदेव राय को बाबा खोज सबसे शक्तिशाली राजा मानते थे ।
कृष्णदेव राय एक महान विद्वान और बड़े साहित्यकार थे । उन्होंने कई ग्रंथ भी लिखे । राजा कृष्णदेव राय ने ना सिर्फ आसपास किए गए सभी विद्रोहियों को जवाब दिया ।बल्कि अपनी सीमाओं का विस्तार तकरीबन पूरे दक्षिण में किया ।पुर्तगालियों से उन्होंने संबंध बनाए उनसे रक्षा और व्यापार में सहयोग प्राप्त किया । राजा कृष्णदेव राय ने अपने प्रशासनिक सुधारों में बड़े पैमाने पर राजसत्ता के कौट्यल्य विदुर जैसे विद्वानों के सिद्धांतों और भारतीय परंपराओं का समावेश किया । हालाकी एक राजा के तौर पर राज्य के मुखिया थे, लेकिन उनके शासन में नीति निर्देश के लिए एक मंत्री परिषद भी था । कृष्णदेव राय की एक अजय शासक के तौर पर मृत्यु हुई । इसके बाद वास्तविक शक्ति कृष्णदेव राय के सहयोगी रहे राम-राय के पास रही । साल 1565 में विजय नगर साम्राज्य पर मुस्लिम महासंघ ने मिलकर आक्रमण किया । जिसमें अहमदनगर बीजापुर, गोलकुंडा और बिदर शामील थे । पहले तो इस युद्ध में संयुक्त मोर्चा की सेना पर विजय नगर की सेना कहर बनकर टूटी । लेकिन अंतिम समय में 70 वर्षीय राम राय की युद्ध में मृत्यु के बाद, विजयनगर की सेना को हार का मुंह देखना पड़ा । दख्खन की सल्तनतो में विजयनगर की राजधानी में प्रवेश करके उनको बुरी तरह से लुटा । और सब कुछ तबाह कर दिया ।
कृष्णदेव राय एक महान विद्वान और बड़े साहित्यकार थे । उन्होंने कई ग्रंथ भी लिखे । राजा कृष्णदेव राय ने ना सिर्फ आसपास किए गए सभी विद्रोहियों को जवाब दिया ।बल्कि अपनी सीमाओं का विस्तार तकरीबन पूरे दक्षिण में किया ।पुर्तगालियों से उन्होंने संबंध बनाए उनसे रक्षा और व्यापार में सहयोग प्राप्त किया । राजा कृष्णदेव राय ने अपने प्रशासनिक सुधारों में बड़े पैमाने पर राजसत्ता के कौट्यल्य विदुर जैसे विद्वानों के सिद्धांतों और भारतीय परंपराओं का समावेश किया । हालाकी एक राजा के तौर पर राज्य के मुखिया थे, लेकिन उनके शासन में नीति निर्देश के लिए एक मंत्री परिषद भी था । कृष्णदेव राय की एक अजय शासक के तौर पर मृत्यु हुई । इसके बाद वास्तविक शक्ति कृष्णदेव राय के सहयोगी रहे राम-राय के पास रही । साल 1565 में विजय नगर साम्राज्य पर मुस्लिम महासंघ ने मिलकर आक्रमण किया । जिसमें अहमदनगर बीजापुर, गोलकुंडा और बिदर शामील थे । पहले तो इस युद्ध में संयुक्त मोर्चा की सेना पर विजय नगर की सेना कहर बनकर टूटी । लेकिन अंतिम समय में 70 वर्षीय राम राय की युद्ध में मृत्यु के बाद, विजयनगर की सेना को हार का मुंह देखना पड़ा । दख्खन की सल्तनतो में विजयनगर की राजधानी में प्रवेश करके उनको बुरी तरह से लुटा । और सब कुछ तबाह कर दिया ।
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